लोक में चिरकाल से प्रचलित कथन को लोकोक्ति कहा जाता है। लोकोक्ति शब्द शब्दों से मिलकर बना है - लोक + उक्ति। लोकोक्तियाँ समाज का भाषाई इतिहास अथवा सांस्कृतिक विरासत होती है। वे इतिहास में किन्ही विशिष्ट घटनाओं एवं स्थितियों से बनती है और फिर भाषा माध्यम से संसार भर में फ़ैल जाती है। तभी तो कहते है कि लोकोक्तियों के माध्यम से एक समाज का सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनितिक अध्ययन किया जा सकता है। लोकोक्ति को 'कहावत' नाम से भी जाना जाता है।
लोकोक्तियाँ एवं मुहावरों का प्रयोग भाषा में ताजगी और अभिव्यक्ति में संक्षिप्तता लाने के लिए किया जाता है। ये भाषा को साहित्यिक नीरसता से बचाकर सरस और जीवंत बनाते है। जिस लेखक या वक्ता की लोकोक्ति तथा मुहावरे पर पकड़ जितनी ज्यादा होगी उसकी अभिव्यक्ति उतनी ही सरस और चुटीली होगी। मुहावरा एक वाक्यांश होता है जबकि लोकोक्ति अपने आप में पूर्ण वाक्य होती है।
यहाँ कुछ लोकोक्तियाँ प्रस्तुत है -
➲ अंधा क्या चाहे दो आँखें - बिना प्रयास इच्छित फल की प्राप्ति।
➲ अंधे के हाथ बटेर लगना - बिना परिश्रम के अयोग्य व्यक्ति को सुफल की प्राप्ति।
➲ अंधेर नगरी चौपट राजा - अयोग्य प्रशासन।
➲ अंधों में काना राजा - मूर्खों के बीच अल्पज्ञ भी बुद्धिमान माना जाता है।
➲ अपना हाथ जगन्नाथ - अपना कार्य स्वयं करना ही उपयुक्त रहता है।
➲ अधजल गगरी छलकत जय - अल्पज्ञ अपने ज्ञान पर अधिक इतराता है।
➲ अरहर की टट्टी गुजरती ताला - बेमेल प्रबंध, सामान्य चीजों की सुरक्षा में अत्यधिक खर्च करना।
➲ अपनी करनी पार उतरनी - मनुष्य को स्वयं के कर्मों के अनुसार ही फल मिलता है।
➲ अपनी-अपनी ढपली,अपना-अपना राग - तालमेल न होना।
➲ अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता - अकेला आदमी बड़ा काम नहीं कर सकता है।
➲ अपना रख पराया चख - स्वयं के पास होने पर भी किसी अन्य की वस्तु का उपभोग करना।
➲ अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत - हानि हो जाने के बाद पछताना व्यर्थ है।
➲ अटका बनिया देव उधार - मजबूर व्यक्ति अनचाहा कार्य भी करता है।
➲ अक्ल बड़ी या भैंस - शारीरिक बल से बुद्धिबल श्रेष्ठ होता है।
➲ अंडे सेवे कोई , बच्चे लेवे कोई - परिश्रम कोई करे फल किसी अन्य को मिले।
➲ अंधे के आगे रोना, अपना दीदा खोना - सहानुभूतिहीन या मुर्ख व्यक्ति के सामने अपना दुखड़ा रोना व्यर्थ है।
➲ आगे नाथ न पीछे पगहा - पूर्णतः बंधन रहित।
➲ आठ कनौजिये नौ चूल्हे - अलगाव या फुट होना।
➲ आठ बार नौ त्योंहार - मौजमस्ती से जीवन बिताना।
➲ आसमान से गिरा, खजूर में अटका - काम पूरा होते-होते व्यवधान आ जाना।
➲ आप भले तो जग भला - स्वयं भले होने पर आपको भले लोग ही मिलते है।
➲ इन तिलों में तेल नहीं - कुछ मिलने या मदद की उम्मीद न होना।
➲ इधर कुआँ उधर खाई - सब ओर संकट।
➲ ऊधो की पगड़ी, माधो का सिर - किसी एक का दोष दूसरे पर मढ़ना।
➲ ऊँगली पकड़ते पहुंचा पकड़ना - थोड़ी सी मदद पाकर अधिकार जमाने की कोशिश करना।
➲ उधार का खाना फूस का तापना - बिना परिश्रम दूसरों के सहारे जीने का निरर्थक प्रयास करना।
➲ उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई - एक बार इज्जत जाने पर व्यक्ति निर्लज्ज हो जाता है।
➲ ऊधो का लेना न माधो का देना - किसी से कोई लेन-देन न होना।
➲ उल्टा चोर कोतवाल को डांटे - दोषी व्यक्ति द्वारा निर्दोष पर दोषारोपण करना।
➲ ऊँट किस करवट बैठता है - परिणाम किसके पक्ष में होता है/अनिश्चित परिणाम।
➲ उल्टे बाँस बरेली को - विपरीत कार्य करना।
➲ ऊँची दुकान फीका पकवान - मात्र दिखावा।
➲ ऊँट के मुँह में जीरा - आवश्यकता अधिक आपूर्ति कम।
➲ एक अनार सौ बीमार - वस्तु अल्प चाह अधिक लोकों की।
➲ एकै साधे सब सधै, सब साधे जब जाय - एक समय में एक ही कार्य करना फलदायी होता है।
➲ एक तो करेला दूसरा नीम चढ़ा - एकाधिक दोष होना।
➲ एक म्यांन में दो तलवारें नहीं समा सकती - दो समान अधिकार वाले व्यक्ति एक साथ कार्य नहीं कर सकते।
➲ एक गन्दी मछली सारे तालाब को गन्दा करती है - एक व्यक्ति की बुराई से पुरे समूह की बदनामी होना।
➲ एक तो चोरी दूसरे सीना-जोरी - अपराध करके रौब जमाना।
➲ एक ही थैली के चट्टे-बट्टे होना - एकसमान दुर्गुण वाले एकाधिक व्यक्ति।
➲ एक हाथ से ताली नहीं बजती - केवल एक पक्षीय सक्रियता से काम नहीं होता।
➲ एक पंथ दो काज - एक कार्य से दोहरा लाभ।
➲ ओछे की प्रीत बालू की भीत - ओछे व्यक्ति की मित्रता क्षणिक होती है।
➲ ओखली में सिर दिया तो मूसल का क्या डर - कठिन कार्य का जिम्मा लेने पर कठिनाइयों से डरना नहीं चाहिए।
➲ ओस चाटे प्यास नहीं बुझती - अल्प साधनों से आवश्यकता या कार्य पूरा नहीं हो पाता।
➲ कंगाली में आटा गीला - संकट में एक और संकट आना।
➲ कभी घी घना तो कभी मुट्ठी चना - परिस्थितियाँ बदलती रहती है , सदैव एक सी नहीं रहती है।
➲ कभी गाड़ी नाव पर, कभी नाव गाड़ी पर - परिस्थितियाँ बदलती रहती है।
➲ काबुल में क्या गधे नहीं होते - मुर्ख सभी जगह मिलते है।
➲ करत-करत अभ्यास के जड़ मति होत सुजान - अभ्यास द्वारा जड़ बुद्धि वाले व्यक्ति भी बुद्धिमान हो सकता है।
➲ कौआ चले हंस की चाल - किसी और का अनुसरण कर अपनापन खोना।
➲ करे कोई भरे कोई - किसी अन्य की करनी का फल भोगना।
➲ कोयले की दलाली में हाथ काला - कुसंग का बुरा प्रभाव पड़ता ही है।
➲ कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा - बेमेल वस्तुओं के योग से सब कुछ बनाना।
➲ कुम्हार अपना ही घड़ा सराहता है - अपनी वस्तु की सभी प्रशंसा करते है।
➲ कौवों के कोसे ढोर नहीं मरते - बुरे आदमी के बुरा कहने से अच्छे आदमी की बुराई नहीं होती।
➲ काला अक्षर भैंस बराबर - अनपढ़ होना।
➲ खरबूजे को देख खरबूजा रंग बदलता है - देखा-देखी परिवर्तन आना।
➲ खग ही जाने खग की भाषा - अपने लोग ही अपने लोगों की भाषा समझते है।
➲ खुदा देता है तो छप्पर फाड़कर देता है - ईश्वर की कृपा से व्यक्ति कभी भी मालामाल हो जाता है।
➲ खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे - असफलता से लज्जित व्यक्ति दूसरों पर क्रोध करता है।
➲ खुदा की लाठी में आवाज नहीं होती - ईश्वर किसे, कब,क्या सजा देगा उसे कोई नहीं जनता।
➲ खोदा पहाड़ निकली चुहिया - अधिक परिश्रम पर अल्प लाभ होना।
➲ गंगा गए गंगादास जमुना गए जमुनादास - सिद्धांतहीन अवसरवादी व्यक्ति।
➲ गोद में छोरा शहर में ढिंढोरा - पास रखी वस्तु को दूर-दूर तक खोजना।
➲ गरीब की जोरू सबकी भाभी - कमजोर आदमी पर सभी रोब जमाते है।
➲ गुरूजी गुड़ ही रहे, चेले शक़्कर हो गए - छोटे व्यक्ति का अपने से बड़ों से आगे निकलना।
➲ गुड़ दिए मरे तो जहर क्यों दे - जब प्रेम से कार्य हो जाये तो क्रोध क्यों करें।
➲ गुड़ न दे, पर गुड़ की सी बात तो करे - कुछ अच्छा दे न दे पर अच्छी बात तो करें।
हिंदी की प्रसिद्ध लोकोक्ति |
लोकोक्तियाँ एवं मुहावरों का प्रयोग भाषा में ताजगी और अभिव्यक्ति में संक्षिप्तता लाने के लिए किया जाता है। ये भाषा को साहित्यिक नीरसता से बचाकर सरस और जीवंत बनाते है। जिस लेखक या वक्ता की लोकोक्ति तथा मुहावरे पर पकड़ जितनी ज्यादा होगी उसकी अभिव्यक्ति उतनी ही सरस और चुटीली होगी। मुहावरा एक वाक्यांश होता है जबकि लोकोक्ति अपने आप में पूर्ण वाक्य होती है।
यहाँ कुछ लोकोक्तियाँ प्रस्तुत है -
लोकोक्तियाँ
➲अंधा बाँटे रेवड़ी फिर-फिर अपने को देय - अधिकार मिलने पर स्वार्थी व्यक्ति अपने लोगों की ही मदद करता है।➲ अंधा क्या चाहे दो आँखें - बिना प्रयास इच्छित फल की प्राप्ति।
➲ अंधे के हाथ बटेर लगना - बिना परिश्रम के अयोग्य व्यक्ति को सुफल की प्राप्ति।
➲ अंधेर नगरी चौपट राजा - अयोग्य प्रशासन।
➲ अंधों में काना राजा - मूर्खों के बीच अल्पज्ञ भी बुद्धिमान माना जाता है।
➲ अपना हाथ जगन्नाथ - अपना कार्य स्वयं करना ही उपयुक्त रहता है।
➲ अधजल गगरी छलकत जय - अल्पज्ञ अपने ज्ञान पर अधिक इतराता है।
➲ अरहर की टट्टी गुजरती ताला - बेमेल प्रबंध, सामान्य चीजों की सुरक्षा में अत्यधिक खर्च करना।
➲ अपनी करनी पार उतरनी - मनुष्य को स्वयं के कर्मों के अनुसार ही फल मिलता है।
➲ अपनी-अपनी ढपली,अपना-अपना राग - तालमेल न होना।
➲ अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता - अकेला आदमी बड़ा काम नहीं कर सकता है।
➲ अपना रख पराया चख - स्वयं के पास होने पर भी किसी अन्य की वस्तु का उपभोग करना।
➲ अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत - हानि हो जाने के बाद पछताना व्यर्थ है।
➲ अटका बनिया देव उधार - मजबूर व्यक्ति अनचाहा कार्य भी करता है।
➲ अक्ल बड़ी या भैंस - शारीरिक बल से बुद्धिबल श्रेष्ठ होता है।
➲ अंडे सेवे कोई , बच्चे लेवे कोई - परिश्रम कोई करे फल किसी अन्य को मिले।
➲ अंधे के आगे रोना, अपना दीदा खोना - सहानुभूतिहीन या मुर्ख व्यक्ति के सामने अपना दुखड़ा रोना व्यर्थ है।
➲ आगे नाथ न पीछे पगहा - पूर्णतः बंधन रहित।
➲ आठ कनौजिये नौ चूल्हे - अलगाव या फुट होना।
➲ आठ बार नौ त्योंहार - मौजमस्ती से जीवन बिताना।
➲ आसमान से गिरा, खजूर में अटका - काम पूरा होते-होते व्यवधान आ जाना।
➲ आप भले तो जग भला - स्वयं भले होने पर आपको भले लोग ही मिलते है।
➲ इन तिलों में तेल नहीं - कुछ मिलने या मदद की उम्मीद न होना।
➲ इधर कुआँ उधर खाई - सब ओर संकट।
➲ ऊधो की पगड़ी, माधो का सिर - किसी एक का दोष दूसरे पर मढ़ना।
➲ ऊँगली पकड़ते पहुंचा पकड़ना - थोड़ी सी मदद पाकर अधिकार जमाने की कोशिश करना।
➲ उधार का खाना फूस का तापना - बिना परिश्रम दूसरों के सहारे जीने का निरर्थक प्रयास करना।
➲ उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई - एक बार इज्जत जाने पर व्यक्ति निर्लज्ज हो जाता है।
➲ ऊधो का लेना न माधो का देना - किसी से कोई लेन-देन न होना।
➲ उल्टा चोर कोतवाल को डांटे - दोषी व्यक्ति द्वारा निर्दोष पर दोषारोपण करना।
➲ ऊँट किस करवट बैठता है - परिणाम किसके पक्ष में होता है/अनिश्चित परिणाम।
➲ उल्टे बाँस बरेली को - विपरीत कार्य करना।
➲ ऊँची दुकान फीका पकवान - मात्र दिखावा।
➲ ऊँट के मुँह में जीरा - आवश्यकता अधिक आपूर्ति कम।
➲ एक अनार सौ बीमार - वस्तु अल्प चाह अधिक लोकों की।
➲ एकै साधे सब सधै, सब साधे जब जाय - एक समय में एक ही कार्य करना फलदायी होता है।
➲ एक तो करेला दूसरा नीम चढ़ा - एकाधिक दोष होना।
➲ एक म्यांन में दो तलवारें नहीं समा सकती - दो समान अधिकार वाले व्यक्ति एक साथ कार्य नहीं कर सकते।
➲ एक गन्दी मछली सारे तालाब को गन्दा करती है - एक व्यक्ति की बुराई से पुरे समूह की बदनामी होना।
➲ एक तो चोरी दूसरे सीना-जोरी - अपराध करके रौब जमाना।
➲ एक ही थैली के चट्टे-बट्टे होना - एकसमान दुर्गुण वाले एकाधिक व्यक्ति।
➲ एक हाथ से ताली नहीं बजती - केवल एक पक्षीय सक्रियता से काम नहीं होता।
➲ एक पंथ दो काज - एक कार्य से दोहरा लाभ।
➲ ओछे की प्रीत बालू की भीत - ओछे व्यक्ति की मित्रता क्षणिक होती है।
➲ ओखली में सिर दिया तो मूसल का क्या डर - कठिन कार्य का जिम्मा लेने पर कठिनाइयों से डरना नहीं चाहिए।
➲ ओस चाटे प्यास नहीं बुझती - अल्प साधनों से आवश्यकता या कार्य पूरा नहीं हो पाता।
➲ कंगाली में आटा गीला - संकट में एक और संकट आना।
➲ कभी घी घना तो कभी मुट्ठी चना - परिस्थितियाँ बदलती रहती है , सदैव एक सी नहीं रहती है।
➲ कभी गाड़ी नाव पर, कभी नाव गाड़ी पर - परिस्थितियाँ बदलती रहती है।
➲ काबुल में क्या गधे नहीं होते - मुर्ख सभी जगह मिलते है।
➲ करत-करत अभ्यास के जड़ मति होत सुजान - अभ्यास द्वारा जड़ बुद्धि वाले व्यक्ति भी बुद्धिमान हो सकता है।
➲ कौआ चले हंस की चाल - किसी और का अनुसरण कर अपनापन खोना।
➲ करे कोई भरे कोई - किसी अन्य की करनी का फल भोगना।
➲ कोयले की दलाली में हाथ काला - कुसंग का बुरा प्रभाव पड़ता ही है।
➲ कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा - बेमेल वस्तुओं के योग से सब कुछ बनाना।
➲ कुम्हार अपना ही घड़ा सराहता है - अपनी वस्तु की सभी प्रशंसा करते है।
➲ कौवों के कोसे ढोर नहीं मरते - बुरे आदमी के बुरा कहने से अच्छे आदमी की बुराई नहीं होती।
➲ काला अक्षर भैंस बराबर - अनपढ़ होना।
➲ खरबूजे को देख खरबूजा रंग बदलता है - देखा-देखी परिवर्तन आना।
➲ खग ही जाने खग की भाषा - अपने लोग ही अपने लोगों की भाषा समझते है।
➲ खुदा देता है तो छप्पर फाड़कर देता है - ईश्वर की कृपा से व्यक्ति कभी भी मालामाल हो जाता है।
➲ खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे - असफलता से लज्जित व्यक्ति दूसरों पर क्रोध करता है।
➲ खुदा की लाठी में आवाज नहीं होती - ईश्वर किसे, कब,क्या सजा देगा उसे कोई नहीं जनता।
➲ खोदा पहाड़ निकली चुहिया - अधिक परिश्रम पर अल्प लाभ होना।
➲ गंगा गए गंगादास जमुना गए जमुनादास - सिद्धांतहीन अवसरवादी व्यक्ति।
➲ गोद में छोरा शहर में ढिंढोरा - पास रखी वस्तु को दूर-दूर तक खोजना।
➲ गरीब की जोरू सबकी भाभी - कमजोर आदमी पर सभी रोब जमाते है।
➲ गुरूजी गुड़ ही रहे, चेले शक़्कर हो गए - छोटे व्यक्ति का अपने से बड़ों से आगे निकलना।
➲ गुड़ दिए मरे तो जहर क्यों दे - जब प्रेम से कार्य हो जाये तो क्रोध क्यों करें।
➲ गुड़ न दे, पर गुड़ की सी बात तो करे - कुछ अच्छा दे न दे पर अच्छी बात तो करें।