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मानव उत्सर्जन तंत्र || मानव शरीर - उत्सर्जन तंत्र || Human Body -Excretory System

शरीर में सम्पन होने वाली उपापचय क्रियाओं के परिणामस्वरूप निर्मित हानिकारक पदार्थों को शरीर ऊतकों से निष्कासन की क्रिया उत्सर्जन कहलाती है। मनुष्य का प्राथमिक उत्सर्जी अंग एक जोड़ी वृक्क होते है। कार्बन डाई ऑक्साइड तथा यूरिया मानव शरीर द्वारा उत्सर्जित किये जाने वाले प्रमुख अपशिष्ट है। श्वसन प्रक्रिया के दौरान कार्बन डाई ऑक्साइड का निर्माण होता है जबकि यकृत में अप्रयुक्त प्रोटीनों के अपघटन से यूरिया का निर्माण होता है। ये बहुत ही जहरीले होते है अतः इन्हें मानव शरीर से बाहर निकलना अनिवार्य है क्योंकि यह मानव शरीर को नुकसान पहुँचा सकते है। इसलिए उत्सर्जन तंत्र का होना बहुत ही जरुरी होता है।

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उत्सर्जन तंत्र - Human Body Excretory System

जरूर पढ़ें :-

प्रमुख उत्सर्जी पदार्थ एवं उनसे सम्बंधित जीव :-

➲ यूरिया :-
यह मानव का मुख्य उत्सर्जी पदार्थ है। सर्वप्रथम संश्लेषित किया जाने वाला कार्बनिक पदार्थ यूरिया है।इसे वोलर ने प्रयोगशाला में संश्लेषित किया था। 
यूरिया का उत्सर्जन करने वाले युरियोटेलिक कहलाते है। जैसे - उभयचर , स्तनधारी।
➲अमोनिया :- 
अमोनिया का निर्माण एमिनो अम्लों के वीएमीनीकरण से होता है। अमोनिया का उत्सर्जन  करने वाले अमोनियोटेलिक कहलाते है। अमोनिया का उत्सर्जन अधिकांश जलीय जीवों में होता है। जैसे - पोरिफेरा , सीलेन्ट्रेटा।
➲यूरिक अम्ल :- 
इसका निर्माण शुष्क वातावरण वाले प्राणी जैसे - कीट , पक्षी  आदि द्वारा किया जाता है। इन्हें युरिकोटेलिक भी कहा  जाता है। इसकी अधिकतम मात्रा पक्षियों की बीट में पायी जाती है। मनुष्य के मूत्र में  लगभग 0.5% यूरिक अम्ल होता है। जैसे - पक्षी, कीट, सरीसृप आदि। 
➲अमीनोअम्ल :- 
एमिनो अम्ल मुख्यतः 20 प्रकार के होते है। इसका निर्माण प्रोटीन के पाचन से होता है। अमीनोअम्ल का उत्सर्जन करने वाले जंतु अमीनोटेलिक कहलाते है। जैसे - घोंघा, इकानोडर्मेटा आदि। 

मानव में उत्सर्जी अंग :- 

1. वृक्क :-
मानव का मुख्य उत्सर्जी अंग वृक्क ( गुर्दा - kidney) है इसके अलावा फेफड़े , यकृत , आंत्र , त्वचा आदि। गुर्दे की कार्यात्मक इकाई "नेफ्रॉन " कहलाती है। हमारे दोनों गुर्दों में 20 लाख नेफ्रोन पाए जाते है। प्रत्येक नेफ्रोन में एक छोटी प्यालीनुमा रचना होती है, उसे बोमेन सम्पुट कहते है।  वृक्क का वजन 140 ग्राम होता है। इसके दो भाग होते है बाहरी भाग कोर्टेक्स तथा भीतरी भाग को मेडुला कहते है। गुर्दे की क्रियाविधि की जाँच इंसुलिन से की जाती है। गुर्दे की पथरी सामान्यत कैल्सियम ऑक्सलेट की बनी होती है। तथा लिथोट्रिप्सी पथरी को बहार निकलने की क्रिया है। गुर्दे उदरगुहा में पेरिटोनियम नामक झिल्ली से ढके होते है। गुर्दा रक्त को क्षारीय बनाये रखने के साथ - साथ जल तथा लवण की मात्रा का संतुलन भी बनाये रखता है। तथा यह एल्बुमिन प्रोटीन द्वारा शरीर के  तरल का परासरणीदाब भी बनाये रखता है। गुर्दे खराब  अवस्था में बहरी मशीन से शरीर से उत्सर्जी पदार्थ अलग करने की क्रिया "डायलिसिस" कहलाती है। एक सामान्य व्यक्ति एक दिन में 1 -1.5 लीटर मूत्र का उत्सर्जन  करता है। त्वचा का मुख्य कार्य परासरण नियमन तथा ताप नियत्रण है।
➲ग्लोमेरूलस की कोशिकाओं से द्रव के छनकर बोमेन सम्पुट की गुहा में पहुँचने की प्रक्रिया को परानिस्पंदन कहते है। 
➲मूत्र का PH मान 6.0-6.5 होता अर्थात मूत्र अम्लीय प्रकृति का होता है। 
2. त्वचा :-
त्वचा का मुख्य कार्य परासरण नियमन, ताप नियंत्रण आदि होता है।  त्वचा में पायी जाने वाली तैलीय ग्रंथियाँ एवं स्वेद ग्रंथियाँ क्रमश : सीबम एवं पसीने का स्रवण करती है। 
3. फेफड़े :-
फेफड़ों द्वारा कार्बन डाई ऑक्साइड और जल वाष्प का उत्सर्जन होता है। प्याज, लहसुन आदि जिसमे वाष्पशील घटक होते है, का उत्सर्जन फेफड़ों के द्वारा ही होता है। 

वृक्क से सम्बंधित प्रमुख रोग :- 

यूरोलिथीसिस ,एल्वर्ट सिंड्रोम , पाइलोनेफ्राइटिस , ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस , ग्लोमेरुलो स्क्लेरोसिस आदि रोग किडनी से सम्बंधित है। 

मानव उत्सर्जन तंत्र पर कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न :-

➲परानिष्यन्दन के पश्चात उपस्थित लाभदायक पदार्थों  वृक्क नलिकाओं  पुन रुधिर में पहुंचना वर्णात्मक पुनरवशोषण कहलाता है।
भूखे व्यक्ति के मूत्र में सोडियम क्लोराइड नामक उत्सर्जी पदार्थ होता है।
यूरिया की अधिक मात्रा शरीर के लिए घातक  होती है। इसे यूरेमिया कहते है इससे मृत्यु भी हो सकती है।
मूत्र के साथ ग्लूकोस का उत्सर्जन ग्लाइकोसुरिया कहलाता है।
पोलिदीपसिया - इसमें बार -बार प्यास लगती है और रोगी बार - बार पानी का सेवन करता है।
पोलियूरिया :- इसमें बार - बार मूत्र आता है।
गर्भवती एवं दुग्धपान करने वाली महिलाओ के मूत्र में क्रिएटिनिन पाया जाता है।
पक्षी ,प्रोटोथीरिया , सांप में मूत्राशय अनुपस्थित रहता है।
अमोनिया सर्वाधिक विषैला उत्सर्जी पदार्थ है।
मूत्रालयों में मूत्र की गंध का कारण जीवाणुओं द्वारा यूरिया का अमोनिया में रूपांतरण है।
मनुष्य का व्रक्क मेटनेफ्रोस से बनते है।
➲हीमेटोयूरिया:- मूत्र में रक्त का पाया जाना।
हीमोग्लोबिनूरिया :- मूत्र में हीमोग्लोबिन का पाया जाना।
➲हीमेटमेसिस :- रक्त का उल्टी में पाया जाना। 
➲एल्बुमिनयूरिया :- मूत्र में एल्ब्यूमिन का पाया जाना। 
➲हिमोपटाइसिस :- रक्त का बलगम में पाया जाना। 
➲प्रोटीनुरिया :-  मूत्र में प्रोटीन का पाया जाना।
मूत्र के रंग का कारण यूरोक्रोम है  तथा गंध का कारण यूरिनोइड है।
➲यूरोक्रोम का निर्माण हीमोग्लोबिन के विखंडन से होता है। 
रक्त में उपस्थित रेनिन हार्मोन वृक्क द्वारा स्रावित होता है।
➲मानव शरीर से कैल्सियम फॉस्फेट का त्याग आहारनाल द्वारा होता है। 
➲वृक्क में कोशिकगुच्छ भाग डायलिसिस का कार्य करता है। 
➲वृक्क (गुर्दे) को मानव शरीर का पूर्ण उत्सर्जी अंग कहा जाता है। 
➲रुधिर के रासायनिक संघटन का वास्तविक नियंत्रक नेफ्रोन होता है। 
➲पथरी के इलाज हेतु होल्जियम लेजर का उपयोग किया जाता है। 
➲भूख के समय मूत्र में कीटोन बॉडीज बायीं जाती है जिन्हें कीटोनयूरिया कहते है। 
➲वृक्कों द्वारा प्रति मिनट निस्यंदित की गयी मात्रा गुच्छीय निस्यंदन दर कहलाती है। 

तो दोस्तों आज के इस पोस्ट में हमने यह जाना कि मानव उत्सर्जन तंत्र ?,मानव शरीर - उत्सर्जन तंत्र ?, Human Body -Excretory System, उत्सर्जन तंत्र क्या है ?, उत्सर्जन तंत्र की कार्य प्रणाली , मानव उत्सर्जन तंत्र और इसके कार्य आदि। 
तो दोस्तों में आशा करता हूँ की आपको यह पोस्ट अच्छा लगा होगा। आपके कोई सुझाव हो तो कमेंट करें और अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें। 
धन्यवाद !

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1 Comments
  1. Nice
    https://www.sarkariresult247.in/2019/09/ajmer-district-gk-in-hindi-rajasthan-gk.html?m=1

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